भारत में, दंगों की सज़ा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अंतर्गत आती है। आईपीसी की धारा 146 से लेकर धारा 148 तक दंगों को संबोधित किया गया है। परिस्थितियों और अपराध की गंभीरता के आधार पर विशिष्ट सज़ा भिन्न हो सकती है। यहां प्रासंगिक अनुभाग हैं: धारा 146 - दंगा करना: धारा 146 दंगे के अपराध को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि जब भी किसी गैरकानूनी सभा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसी सभा के सामान्य उद्देश्य के लिए बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है, तो ऐसी सभा का प्रत्येक सदस्य दंगे के अपराध का दोषी होता है। धारा 147 - दंगा करने के लिए सज़ा: धारा 147 में दंगा करने पर सजा का प्रावधान है। यदि दंगा करने का अपराध किया जाता है, तो सज़ा दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती है। धारा 148 - घातक हथियार से लैस होकर दंगा करना: यदि दंगा का अपराध करते समय अभियुक्त घातक हथियार से लैस है तो धारा 148 में बढ़ी हुई सजा का प्रावधान है। सज़ा तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सामान्य प्रावधान हैं, और किसी विशिष्ट मामले में वास्तविक सज़ा विभिन्न कारकों पर निर्भर हो सकती है, जिसमें अपराध की प्रकृति और गंभीरता, हथियारों की उपस्थिति और हिंसा की सीमा शामिल है। कानूनी प्रक्रिया और दंड प्रत्येक मामले के विशिष्ट विवरण के आधार पर अदालत के विवेक से प्रभावित हो सकते हैं।
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