हां, भारत में नाबालिगों से संबंधित कोर्ट मैरिज के लिए विशेष नियम लागू हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि ऐसे विवाह उचित सुरक्षा उपायों के साथ और कानूनी आवश्यकताओं के अनुपालन में किए जाएं। नाबालिगों से संबंधित कोर्ट मैरिज के लिए लागू नियमों और विनियमों का अवलोकन यहां दिया गया है: 1. बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: विवाह की न्यूनतम आयु: अधिनियम नाबालिगों (एक निश्चित आयु से कम आयु के व्यक्ति) के विवाह पर प्रतिबंध लगाता है और महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष निर्धारित करता है। अपवाद: अधिनियम विशिष्ट परिस्थितियों में कुछ अपवादों की अनुमति देता है, जैसे कि माता-पिता की सहमति और न्यायिक अनुमोदन, लेकिन ये अपवाद कठोर शर्तों के अधीन हैं। 2. विशेष विवाह अधिनियम, 1954: विवाह योग्य आयु: विशेष विवाह अधिनियम, जो भारत में कोर्ट मैरिज को नियंत्रित करता है, 18 वर्ष (महिलाओं के लिए) और 21 वर्ष (पुरुषों के लिए) से अधिक आयु के व्यक्तियों को माता-पिता की सहमति के बिना विवाह करने की अनुमति देता है। नाबालिगों का विवाह: नाबालिगों से जुड़े मामलों में, अधिनियम के अनुसार विवाह संपन्न होने के लिए माता-पिता की सहमति और न्यायिक स्वीकृति की आवश्यकता होती है। 3. नाबालिगों के विवाह के लिए आवश्यकताएँ: माता-पिता की सहमति: नाबालिगों के विवाह के लिए माता-पिता या अभिभावकों की सहमति आवश्यक है। विवाह को आगे बढ़ाने के लिए माता-पिता या अभिभावकों के दोनों समूहों को लिखित सहमति प्रदान करनी चाहिए। न्यायिक स्वीकृति: नाबालिगों के विवाह के लिए माता-पिता की सहमति के अलावा न्यायिक स्वीकृति की भी आवश्यकता होती है। संबंधित जिला न्यायालय या पारिवारिक न्यायालय को यह संतुष्ट होना चाहिए कि विवाह नाबालिग के सर्वोत्तम हित में है और विवाह की अनुमति देने के लिए वैध कारण हैं। 4. नाबालिगों के विवाह के लिए न्यायालय प्रक्रिया: न्यायालय में याचिका: विवाह करने के इच्छुक पक्षों को विवाह की अनुमति के लिए उपयुक्त जिला न्यायालय या पारिवारिक न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करनी चाहिए। न्यायालय जाँच: न्यायालय पक्षों की आयु, विवाह के लिए उनकी सहमति और माता-पिता की सहमति प्राप्त की गई है या नहीं, यह पता लगाने के लिए जाँच करता है। सहमति का सत्यापन: न्यायालय माता-पिता या अभिभावकों की लिखित सहमति का सत्यापन करता है और सुनिश्चित करता है कि यह स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के दी गई है। न्यायिक आदेश: यदि न्यायालय को संतुष्टि हो जाती है कि विवाह नाबालिग के सर्वोत्तम हित में है और सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किया गया है, तो वह विवाह को संपन्न करने की अनुमति देने वाला आदेश जारी करता है। 5. कानूनी वैधता: कानूनी आवश्यकताओं का अनुपालन: नाबालिगों से संबंधित न्यायालय विवाह कानूनी रूप से तभी वैध होते हैं जब वे विशेष विवाह अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन करते हैं, जिसमें माता-पिता की सहमति और न्यायिक स्वीकृति प्राप्त करना शामिल है। निष्कर्ष: भारत में नाबालिगों से संबंधित न्यायालय विवाह नाबालिगों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा करने और कम उम्र में विवाह को रोकने के उद्देश्य से विशिष्ट नियमों और विनियमों के अधीन हैं। विशेष विवाह अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम के साथ, ऐसे विवाहों के संचालन के लिए कानूनी रूपरेखा निर्धारित करता है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता की सहमति और न्यायिक स्वीकृति की आवश्यकता होती है कि विवाह नाबालिग के सर्वोत्तम हित में है। भारत में नाबालिगों से संबंधित न्यायालय विवाहों की वैधता के लिए इन कानूनी आवश्यकताओं का अनुपालन आवश्यक है।
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