यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 जैसे विशेष कानूनों के तहत अपराधों से निपटने में बच्चों की सुरक्षा और मामलों के त्वरित समाधान को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई विशिष्ट प्रक्रियाएँ शामिल हैं। POCSO अधिनियम के तहत अपनाई जाने वाली प्रमुख प्रक्रियाएँ इस प्रकार हैं: अपराधों की रिपोर्टिंग: कोई भी व्यक्ति जो POCSO अधिनियम के तहत किसी अपराध के बारे में जानता है, उसे तुरंत पुलिस या विशेष किशोर पुलिस इकाई (SJPU) को इसकी रिपोर्ट करनी होती है। ऐसे अपराधों की रिपोर्ट न करने पर अधिनियम की धारा 19 के तहत कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। विशेष पुलिस अधिकारियों द्वारा जाँच: अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि POCSO अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए। ये अधिकारी बच्चों से जुड़े संवेदनशील मामलों को संभालने के लिए सुसज्जित हैं और उनसे सावधानी और संवेदनशीलता के साथ जाँच करने की अपेक्षा की जाती है। बाल-अनुकूल प्रक्रियाएँ: जाँच और परीक्षण के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएँ बाल-अनुकूल होने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। उदाहरण के लिए, बाल पीड़ितों के बयान इस तरह से दर्ज किए जाते हैं कि उन्हें कम से कम आघात पहुँचे और बच्चे से आक्रामक पूछताछ न की जाए। समयबद्ध जांच: POCSO अधिनियम में त्वरित जांच की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। पुलिस को अपराध की रिपोर्ट करने की तिथि से दो महीने के भीतर जांच पूरी करनी होती है। अनिवार्य चिकित्सा जांच: यौन अपराधों के मामलों में, साक्ष्य जुटाने के लिए पीड़ित बच्चे की जल्द से जल्द चिकित्सा जांच की जाती है। यह जांच किसी योग्य चिकित्सक द्वारा और अधिनियम के तहत निर्दिष्ट दिशा-निर्देशों के अनुसार की जानी चाहिए। चार्जशीट दाखिल करना: जांच पूरी होने के बाद, पुलिस को निर्दिष्ट विशेष POCSO न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करनी चाहिए। चार्जशीट में अपराध के सभी प्रासंगिक साक्ष्य और विवरण शामिल होने चाहिए। मुकदमों के लिए विशेष न्यायालय: POCSO अधिनियम में अधिनियम के तहत अपराधों के लिए मुकदमे चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का आदेश दिया गया है। इन न्यायालयों को बाल पीड़ितों के लिए समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामलों में तेजी लाने का काम सौंपा गया है। परीक्षण प्रक्रिया: मुकदमे को इस तरह से चलाया जाता है कि पीड़ित बच्चे को कम से कम आघात पहुंचे। आरोपी के साथ टकराव से बचने के लिए बच्चे को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही देने की अनुमति दी जा सकती है। न्यायालय गवाही के दौरान अभिभावक या सहायक व्यक्ति की उपस्थिति की भी अनुमति दे सकता है। पहचान की सुरक्षा: POCSO अधिनियम के तहत पीड़ित बच्चे की पहचान सुरक्षित है। मामले पर मीडिया रिपोर्टिंग में बच्चे की निजता की रक्षा के लिए उसका नाम, पता या कोई भी पहचान संबंधी जानकारी प्रकट करने पर प्रतिबंध है। पुनर्वास और मुआवज़ा: अधिनियम में पीड़ित बच्चे के पुनर्वास का प्रावधान है और यह अनिवार्य किया गया है कि राज्य सरकार पीड़ित और उसके परिवार को सहे गए आघात और पीड़ा के लिए मुआवज़ा दे सकती है। इसमें चिकित्सा उपचार, परामर्श और अन्य सहायता सेवाओं के लिए वित्तीय सहायता शामिल हो सकती है। अपील और समीक्षा: POCSO अधिनियम विशेष न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील करने का अधिकार प्रदान करता है। पीड़ित या उनके अभिभावक मुकदमे के परिणाम से असंतुष्ट होने पर अपील दायर कर सकते हैं। POCSO अधिनियम के तहत इन प्रक्रियाओं का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों के खिलाफ अपराधों से तुरंत और संवेदनशील तरीके से निपटा जाए, पीड़ित की भलाई को प्राथमिकता दी जाए और साथ ही न्याय के सिद्धांतों को भी कायम रखा जाए।
Answer By Pranayraj Ranveerबाल सुरक्षा अधिनियम के तहत किशोर की सुरक्षा करना हर भारतीयों का फर्ज बनता है इसलिए बाल सुरक्षा अधिनियम के तहत हर भारतीयों को अपने आसपास जो हो रहे हैं शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न के लिए नजदीकी पुलिस थानों को जानकारी देना अनिवार्य होता है और उस समाज के अंदर सुरक्षा प्रदान होती है
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