भारत में मध्यस्थता करने की प्रक्रिया मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 द्वारा शासित है। निम्नलिखित भारत में मध्यस्थता प्रक्रिया की एक सामान्य रूपरेखा है: मध्यस्थ(रों) की नियुक्ति: विवाद के पक्ष समझौते या लागू मध्यस्थता नियमों के अनुसार मध्यस्थ(रों) का चयन करेंगे। यदि पक्ष मध्यस्थ(रों) की नियुक्ति पर सहमत होने में असमर्थ हैं, तो न्यायालय नियुक्ति कर सकता है। प्रारंभिक बैठक: मध्यस्थ मध्यस्थता की कार्यवाही के दायरे और समय-सीमा के साथ-साथ किसी भी प्रक्रियात्मक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए पार्टियों के साथ एक प्रारंभिक बैठक आयोजित करेगा। दलीलों का आदान-प्रदान: पार्टियां दलीलों का आदान-प्रदान करेंगी, जिसमें दावे का बयान, बचाव का बयान और कोई भी प्रतिदावा या क्रॉस-दावे शामिल हो सकते हैं। सुनवाई: मध्यस्थ पक्षकारों को अपने साक्ष्य और तर्क प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिए सुनवाई करेंगे। सुनवाई व्यक्तिगत रूप से या वीडियोकांफ्रेंसिंग द्वारा आयोजित की जा सकती है। पुरस्कार: मध्यस्थ एक अंतिम और बाध्यकारी निर्णय देगा, जिसे लिखित रूप में पार्टियों को सूचित किया जाएगा। पुरस्कार में निर्णय के कारण और दी गई किसी भी क्षति या राहत की राशि शामिल होगी। प्रवर्तन: यदि एक पक्ष निर्णय का पालन करने में विफल रहता है, तो दूसरा पक्ष लागू प्रक्रियाओं के अनुसार न्यायालय में पुरस्कार को लागू करने की मांग कर सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विवाद की विशिष्ट परिस्थितियों और लागू मध्यस्थता नियमों के आधार पर मध्यस्थता प्रक्रिया भिन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त, पक्ष मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की आवश्यकताओं के अधीन अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप मध्यस्थता प्रक्रिया को संशोधित करने के लिए सहमत हो सकते हैं।
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