भारत में, मध्यस्थों की राष्ट्रीयता के संबंध में विशेष विनियम और दिशानिर्देश हैं, विशेष रूप से मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अंतर्गत। यहाँ एक विस्तृत अवलोकन दिया गया है: भारत में मध्यस्थों की राष्ट्रीयता सामान्य सिद्धांत: मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 मध्यस्थों की राष्ट्रीयता को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित नहीं करता है। मध्यस्थ किसी भी राष्ट्रीयता के हो सकते हैं, बशर्ते कि पक्षों की सहमति हो या मध्यस्थ संस्था के नियम निर्दिष्ट हों। विदेशी नागरिक: विदेशी नागरिक भारत में मध्यस्थ के रूप में काम कर सकते हैं। उनकी नियुक्ति आम तौर पर राष्ट्रीयता के बजाय उनकी योग्यता, विशेषज्ञता और निष्पक्षता के आधार पर होती है। नागरिकता और पात्रता: भारत में विवादों में मध्यस्थता करने के लिए मध्यस्थों का भारतीय नागरिक होना आवश्यक नहीं है। भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते वे मध्यस्थता और सुलह अधिनियम में निर्धारित योग्यताएं पूरी करते हों। अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता: भारत में स्थित या भारतीय पक्षों को शामिल करने वाले अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिए, अधिनियम किसी भी राष्ट्रीयता के मध्यस्थों की नियुक्ति की अनुमति देता है। यह अधिनियम अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं और UNCITRAL मॉडल कानून सिद्धांतों के अनुरूप है, जो मध्यस्थों पर राष्ट्रीयता प्रतिबंध नहीं लगाते हैं। मध्यस्थ संस्थाएँ: भारत में कई मध्यस्थ संस्थाएँ, जैसे कि मुंबई सेंटर फॉर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन (MCIA), दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (DIAC), और अन्य, विदेशी नागरिकों को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देती हैं। इन संस्थाओं के पास मध्यस्थ नियुक्तियों के संबंध में अपने स्वयं के नियम और दिशानिर्देश हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीयता आम तौर पर अयोग्यता कारक नहीं है। व्यावहारिक विचार विशेषज्ञता और अनुभव: पक्ष अक्सर विवाद के विषय में मध्यस्थ की विशेषज्ञता और राष्ट्रीयता की तुलना में उनकी निष्पक्षता को प्राथमिकता देते हैं। मध्यस्थों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे योग्य पेशेवर हों और उन्हें मध्यस्थता कानूनों और प्रक्रियाओं की पूरी समझ हो। भाषा प्रवीणता: मध्यस्थों को प्रभावी संचार और समझ सुनिश्चित करने के लिए मध्यस्थता कार्यवाही की भाषा(ओं) में कुशल होना चाहिए। पुरस्कारों का प्रवर्तन: मध्यस्थों द्वारा दिए गए पुरस्कार, चाहे वे भारतीय हों या विदेशी, न्यूयॉर्क कन्वेंशन के तहत भारत में प्रवर्तनीय हैं, बशर्ते कुछ शर्तें पूरी हों। निष्कर्ष संक्षेप में, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत भारत में मध्यस्थों की राष्ट्रीयता पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं हैं। भारतीय और विदेशी नागरिक दोनों ही अपनी योग्यता, निष्पक्षता और प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के पालन के अधीन मध्यस्थ के रूप में काम कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण लचीलेपन को प्रोत्साहित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि पक्षों को विविध विशेषज्ञता और अंतर्राष्ट्रीय अनुभव वाले मध्यस्थों तक पहुंच प्राप्त हो।
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